Monday 16 January 2023

शायरी

धीरे धीरे सबकुछ सहना सीख गया हूं
तन्हा तन्हा घर पे रहना सीख गया हूं
तुमने तो कुछ कहने लायक कब छोड़ा था
अपना गम मै खुद से कहना सीख गया हूं

सही नही है मगर गलत भी लगा नही वो
कहीं नही है मगर अभी तक जुदा नही वो
अभी तो खुशबू भरी हुई है बदन मे मेरे
गया है लेकिन लगे यही के गया नही वो

इन रस्तों को मंजिल कहके कितने दिन इतराओगे
मै अपने रस्ते जाऊंगा तुम अपने रस्ते जाओगे
आते जाते मिलना तो फिर नज़रे तिरछी कर लेना
उलझे अबकी नजरो मे तो फिर वापस ना आओगे

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