Saturday 21 January 2023

अच्छा कैसे लग सकता है

मुझको तेरा चुप हो जाना अच्छा कैसे लग सकता है
तुमको खोकर सबकुछ पाना अच्छा कैसे लग सकता है

जिन गलियों से खुशबू तेरी डोली सजकर निकल गई हो
उन गलियों में आना जाना अच्छा कैसे लग सकता है

अंत जहां पर खुशियों का हो इश्क जहां पर शर्मिंदा हो
दर्द भरा फिर वो अफसाना अच्छा कैसे लग सकता है

जिसने तेरी दहलीजों पे दिल की जन्नत देखी अबतक
उस पागल को पागलखाना अच्छा कैसे लग सकता है

तुम ही मुझको समझाती थी इश्क वफा की मीठी बातें
अब उल्टा तुमको समझाना अच्छा कैसे लग सकता है

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