Saturday 16 September 2023

ग़ज़ल - काश

काश! ऐसा हो किसी दिन लौट आये तू कभी
वक़्त की रुसवाइयों को भूल जाये तू कभी

उन दिनों की याद में हम फिर न सोये रात भर
जागती आँखों को आकर फिर सुलाये तू कभी

तुमने हँसकर बादलों को ऐसे घायल कर दिया
वो बरसते ही रहे के भीग जाये तू कभी

अपने दिल की हसरतों को क्या बतायें आप से
बिन कहे और बिन सुने ही मुस्कुराये तू कभी

जिंदगी भर गीत तेरे ही लिखें मैंने तरुण
काश! ऐसा हो कि इनको गुनगुनाये तू कभी

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