Saturday, 2 August 2025

ग़ज़ल अनमना सा मन मेरा

अनमना सा मन मेरा, जो तुम मनाओ मान जाये
क्यों किसी के दर से कोई रूठकर मेहमान जाये

एक दिल है एक धड़कन एक हैं हम दो नहीं हैं
ये मुझे मालूम है पर तू कभी तो मान जाये

हूँ अकेला दूर मंजिल राह में कांटे बहुत हैं
हार तबतक है नहीं जबतक नहीं अरमान जाये

एक तुम थे साथ मे तो जिंदगी थी साथ मेरे 
खैर! अब तुम जा रहे तो ख़्वाब जायें जान जाये

गीत कविता और गज़लें इसलिए लिखता 'तरुण' है 
क्या पता किस दिन तुम्हारा पंक्तियों पर ध्यान जाये

ग़ज़ल किसी का दिल जो टूटेगा

किसी का दिल जो टूटेगा किसी के काम आयेगा 
कहीं बेचैन रातें और कहीं आराम आयेगा

मुहब्बत के सफर में राह मंजिल दूंढ़ लेती है 
किसी दिन आपके भी नाम से पैगाम आयेगा

हिमाकत कर रहा है दिल तुम्हारे दिल की शोहबत में 
मगर फिर भी निगाहों पर तेरे इल्जाम आयेगा

थकन उसकी मिटाने के लिए कुछ फूल रख लेना 
वो निकला है सुबह लड़ के मगर वो शाम आयेगा

चरागों में मशालों में सितारों में कहीं पर तो
'तरुण' यूँही रही कोशिश तुम्हारा नाम आयेगा

शिव गीत

हर हर महादेव… ओम नमः शिवाय… ओम नमः शिवाय…"

सावन की बूंदें जब बरसें गगन से,
जैसे हर हर गंगे की गूँज धरा पे।
काँवड़ियों का सैलाब राहों पे घूमे ,
शिवालयों में अतिमधुर भजन गूंजे 

बेलपत्र चढ़े शिवलिंग पर, नंदी की घंटियां बजती हैं।
सावन में मेरे भोलेनाथ की सवारी सजती है 

कैलाश की चोटी पे बर्फ सफेद,
जहाँ ध्यान में लीन महादेव।
गंगाधर, नटराज, औघड़ दानी,
आदियोगी है देवों के देव।

तीसरी आंख में जो अग्नि छुपाए,
सृष्टि का हर रहस्य बताए।
वो नीलकंठ विषपान कर के भी,
सबको जीवन का अमृत पिलाए।

महाशिवरात्रि की रात सजती है,
दीप जलते हैं, शंख बजते हैं।
त्रिपुंड माथे पे भस्म रमाए,
कण-कण में शिव के स्वर गूंजते हैं ।

शिव शंकर शम्भू आरती

कंकड़ कंकड़ शंकर है और मै कंकड़ की माटी
कंकड़ कंकड़ शंकर है और मै कंकड़ की माटी 
भोले तेरी लौ से जलती है जीवन की बाती
भोला भाला शिव कैलाशा वाला है रखवाला 
भोला भाला शिव कैलाशा वाला है रखवाला 
डमरू लेकर झूमे बाबा मेरा वो मतवाला

ॐ शिव शंकर शम्भू 

शिव तुम ही रखवाले, तुम ही प्राणप्रिये
प्रभु तुम ही प्राणप्रिये
तुमको जो भी ध्यावे, उसको तार दिये
ॐ शिव शंकर शम्भू

श्रावण मास तुम्हारे, हिय को अति प्यारा
प्रभु हिय को अति प्यारा
भक्त करे जल अर्पण, बोले जयकारा
ॐ शिव शंकर शम्भू

नाद करे जल मारुत, मेघ करे गर्जन
प्रभु मेघ करे गर्जन
विधिवत सृष्टि तुम्हारा, करती है अर्चन
ॐ शिव शंकर शम्भू

नेहभाव से रहते, मूषक बाघ शिखी
प्रभु मूषक बाघ शिखी
धेनु रहे सेवा में, नाग बने कंठी
ॐ शिव शंकर शम्भू

कांवड़ लेकर जाये, भक्त मगन तेरा
प्रभु भक्त मगन तेरा
झूमे नाचे गाये, जहाँ लगे डेरा
ॐ शिव शंकर शम्भू

भोलेनाथ तुम्हारा, जो भी नाम जपे
प्रभु जो भी नाम जपे
संकट उसका कटता, रूठे भाग्य जगे
ॐ शिव शंकर शम्भू

कविराज तरुण

हर हर शंकर दोहे

हर हर शंकर, करुणा सागर, ध्यान धरो मन मौन 
नीलकंठ की महिमा से, यहाँ अपरिचित कौन 

हर हर महादेव, हर हर महादेव 

जटा जूट गंगा बहे, भाल विराजे चंद्र।
आदियोग आसन धरें, जपे मनोहर मंत्र॥

भस्म लगायें अंग पर, भूत भरें दरबार।
महादेव ही कर सकें, दुष्टों का संहार।।

अमरनाथ के नाम से, गूँजित श्रावण मास।
भक्तिभाव से कीजिये, सोमवार उपवास।।

श्रावण मास प्रतीक है, शिव पूजा का काल।
कावड़ियों की फौज से, गंगा हुई निहाल।।

सोमवार का व्रत करें, बेल धतूर चढ़ाय।
ओमकार के जाप से, जीवन ये तर जाय।।

महाकाल के तेज से, उज्जयिनी की शान।
महामृत्युंजय मंत्र से, मिलते हैं भगवान ।।

सोमनाथ भी आप हैं, विश्वनाथ भी आप।
बैधनाथ भी आप हैं, आपहि सब के नाथ।।

अमरनाथ की हो गुफा, शिव जी का हो ध्यान।
इससे ज्यादा कुछ नहीं, मांगूँ मै वरदान।।