Monday 18 November 2013

कोई तो रोको


कोई तो रोको ...
    मेरी बस्ती जल रही है ।
गाँधी सुभाष भगत सिंह...
    हर हस्ती पिघल रही है ।।
इस वतन का कोना-कोना
    बना राजनीति का खिलौना
मौन है क्यूँ राजा...
    जनता उबल रही है ।
कोई तो रोको ...
    मेरी बस्ती जल रही है ।।
हो पंजाब सिंध मराठी
    या क्षत्रिय ब्रह्म या भाटी
जाति धरम से हिन्द की...
    अब आत्मा बिखल रही है ।
हिमखंडो का हिमालय
    बंगाल की या खाड़ी...
पूरब की सरजमीं हो
    या फिर हो कन्याकुमारी...
विभक्त टुकड़ो में भारती की...
    इज्जत उछल रही है ।
और साख इस वतन की ...
    देखो फिसल रही है ।।
कोई तो रोको ...
    मेरी बस्ती जल रही है ।
गाँधी सुभाष भगत सिंह...
    हर हस्ती पिघल रही है ।।


--- कविराज तरुण





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