फूल गुलशन के फिर मुस्कुराने लगे...
शाम ढलने लगी वो याद आने लगे ...
हाँ मुमकिन है ख्वाबो में इश्क करना,
नींद आँखों में हम अपने सजाने लगे ।
चाँद की रोशिनी मेरे घर पर पड़ी ...
रातरानी की डाली पर कलिया खिली...
हम उन्हें पास अपने बुलाने लगे ,
शाम ढलने लगी वो याद आने लगे ।
दुपहरी में अपनी मुलाक़ात में...
लम्हे लम्हे में शामिल हर बात में ...
याद है कैसे वो शर्माने लगे ,
शाम ढलने लगी वो याद आने लगे ।
एक पल वो भी था, थे खफा वो बहुत...
पास तो खूब थे पर, थे जुदा वो बहुत...
रूठते वो गए हम मनाने लगे ,
शाम ढलने लगी वो याद आने लगे ।
इस गलीचे पर कदमो की आहट को लेकर...
अपने चेहरे पर हल्की सी मुस्कराहट
को लेकर...
प्यार की नई दुनिया हम बसाने लगे,
शाम ढलने लगी वो याद आने लगे ।
- कविराज तरुण
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