Monday, 18 November 2013

याद आने लगे



फूल गुलशन के फिर मुस्कुराने लगे...
शाम ढलने लगी वो याद आने लगे ...
हाँ मुमकिन है ख्वाबो में इश्क करना,
नींद आँखों में हम अपने सजाने लगे ।

चाँद की रोशिनी मेरे घर पर पड़ी ...
रातरानी की डाली पर कलिया खिली...
हम उन्हें पास अपने बुलाने लगे ,
शाम ढलने लगी वो याद आने लगे ।

दुपहरी में अपनी मुलाक़ात में...
लम्हे लम्हे में शामिल हर बात में ...
याद है कैसे वो शर्माने लगे ,
शाम ढलने लगी वो याद आने लगे ।

एक पल वो भी था, थे खफा वो बहुत...
पास तो खूब थे पर, थे जुदा वो बहुत...
रूठते वो गए हम मनाने लगे ,
शाम ढलने लगी वो याद आने लगे ।

इस गलीचे पर कदमो की आहट को लेकर...
अपने चेहरे पर हल्की सी मुस्कराहट 
को लेकर...
प्यार की नई दुनिया हम बसाने लगे,
शाम ढलने लगी वो याद आने लगे ।

- कविराज तरुण

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