वात पत्रों पर लिखा जब मैने सुरीला गान
तेरी याद का होने लगा इसमे आगमन प्रस्थान
पर अकिंचित मन तेरा है आज भी अंजान
वात पत्रों पर लिखा जब मैने सुरीला गान ।
झीनी झीनी पुष्प जैसी तेरी स्वरांजली
भीनी भीनी ऋतु मे क्रीडा करती तरु मंजरी
धीमे धीमे तू बनी इन अधरों की मुस्कान
वात पत्रों पर लिखा जब मैने सुरीला गान ।
सत्य से हूँ मै वंचित स्वप्न का है ज्ञान
इस हृदय के धड़कनों की तूही अब पहचान
वायु जल सर्वत्र फैला तेरा ही सोपान
वात पत्रों पर लिखा जब मैने सुरीला गान ।
मन मयूरा चल पड़ा प्रेमपग उद्यान
खग भी विस्मित देखते हैं कैसी ये उड़ान
जो कल्पनाओं के परे खोजे आसमान
वात पत्रों पर लिखा जब मैने सुरीला गान ।
पर नही ये चाह तुझपर आये कोई व्यवधान
हूँ अतः कुछ मौन प्रत्यक्ष तुम मेरे भगवान
बस नयन से नयन की भेंट का है अरमान
वात पत्रों पर लिखा जब मैने सुरीला गान ।
कविराज तरुण
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