Sunday, 24 April 2016

ग़ज़ल चाँदनी रात

निशा को भी रोशिनी की जरुरत होगी
चाँदनी रात में कब तुमसे मोहब्बत होगी
अब तो खोजती है कश्ती भी साहिल का पता
माना पहले उसे इन लहरों की हसरत होगी
निशा को भी रोशिनी की जरुरत होगी
चाँदनी रात में कब तुमसे मोहब्बत होगी

उगा के फूल अरमानों के अपने गुलशन में
दिये जला के बैठा हूँ कबसे चिलबन में
ये घटा बरसी थी कई रोज जमाने के लिए
अपनी आँखों से भिगोया है फ़र्श आँगन में
अबके बारिश में संग भीगने की चाहत होगी
चाँदनी रात में कब तुमसे मोहब्बत होगी

मुख़्तसर सी थी तमन्ना अब वो भी न रही
बात होने लगी बेवज़ह जो हमने न कही
तुम दुनियां की घनी भीड़ की सुनते ही रहे
ग़लत तो होना ही था करूँ कितना भी सही
जाने कब दिल में तेरे इन बातो की बगावत होगी
चाँदनी रात में कब तुमसे मोहब्बत होगी

कविराज तरुण

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