Friday, 8 April 2016

बीत हुआ कल

छुपी हुई देखी तेरी नजरो में एक मोहब्बत,
कुछ अधूरे से उसमे अनकहे ख्वाब भी थे ।
काँटो की चुभन का दर्द था बेशक,
पर किसी कोने में महकते गुलाब भी थे ।
है यकीं हमें इस अँधेरे से बाहर ,
किसी की दुनियां के तुम आफताब भी थे ।
आज खुद के सवालो में गुम हो ,
कभी हर पहेली के तुम जवाब भी थे ।
उम्र दर उम्र बीते लम्हों पर मुस्कुराते ,
तुम हसीं ग़ज़ल की पहली रियाज़ भी थे ।
यूँ समेट रहे हो अपने दिल के पन्ने ,
कभी किसी के लिए पूरी किताब भी थे ।

कविराज तरुण

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