Tuesday, 24 May 2016

कर्ता कर्महीन

कर्ता कर्म से विमूढ़ हो गया ।
सम्प्रदाय राजनीति का मूल हो गया ।
पैतृक धरोहर का अधिकार संविधान ,
लोकतंत्र का ढाँचा सारा उन्मूल हो गया ।
क्षेत्र धर्म जाति वर्ण में खंडित समाज आज,
राजनेताओं के चरणों में दबी धूल हो गया ।
लोग देने लगे माँ भारती को गाली
अमर्यादित भी खूब पाते हैं ताली
गरीब की आज भी सूनी है थाली
फूल जैसा वतन मुरझाया बिन माली
सुख का सपना मानो एक भूल हो गया ।
जिस जिसको सत्ता मिली वो नशे में चूर हो गया ।
कर्ता कर्म से विमूढ़ हो गया ।
सम्प्रदाय राजनीति का मूल हो गया ।

✍🏻 कविराज तरुण

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