राष्ट्र स्वाभिमान
वृस्तृत गरल के प्रबन्ध हो गए ।
रणबांकुर धरा पर आज चंद हो गए ।
कैसे बजेगी विजय की धुनि ।
छूते ही तार खंड खंड हो गए ।
मंद पद गया माँ भारती का गान ।
कटघरे में खड़ा हुआ है स्वाभिमान ।
दाग लगने लगे शत्रु जगने लगे ।
ध्वज गिरा के कपूत आज हँसने लगे ।
कल जो चौहान थे जयचंद हो गए ।
भ्रमित चेहरों के सर्वनेत्र बंद हो गए ।
दिल के छाले तरुण मात्र छंद हो गए ।
रणबांकुर धरा पर आज चंद हो गए ।
✍🏻 कविराज तरुण
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