किसी के लिए वो भीख है
किसी के लिए दान है ।
किसी के लिए जीविका
किसी का स्वाभिमान है ।
जब आत्मबल हार जाता है ।
या कोई रस्ता नजर नहीं आता है ।
खुद को कोई जब अतिसूक्ष्म समझ लेता है ।
तब परिस्तिथियों के आगे हाथ बिखेर देता है ।
पर किसी न किसी रूप में सब हैं भिखारी ।
जिसपे कुछ नहीं वो लोगो से दान माँगता है ।
जिसपे सबकुछ है विधाता से ध्यान माँगता है ।
कोई माँगता है आशीष तो कोई ज्ञान माँगता है ।
कोई मरने से पहले कर जोड़े प्रान माँगता है ।
विनती है मेरी छोड़ दो लाचारी ।
माँगने की अच्छी नही है बिमारी ।
खुद पर काबू करो हौसले से चलो ।
अपनी क्षमता का हक़ खुद ही हासिल करो ।
जिसको अपने आत्मबल पर मान है ।
वास्तव में वही इंसान है ।
उसके कदमो में जमीं आसमान है ।
उसको ही परमशक्ति से मिलता वरदान है ।
✍🏻 कविराज तरुण
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