Tuesday, 15 November 2016

तांडव

आज के सामयिक हालातो पर लिखी एक रचना

जब शिव जी करते हैं तांडव
तब चीख सुनाई देती है ।
असुरों की सत्ता हिल जाती
रंगत झल्लाई रहती है ।।

कलयुग के काले कौवों का
काले धन का अंबार लगा ।
नष्ट हुआ सब भ्रान्तिमान
जब हंसो का दरबार लगा ।।

जब हो जाती अति अमावस की
सूरज तब और चमकते हैं ।
जो इतराते थे नोटों की गड्डी पर
अब ठिठक ठिठक कर चलते हैं ।।

अब फिर से मोती चुन चुनकर
हंसो के हिस्से आयेगा ।
भारत से कलयुग दूर हटेगा
सतयुग अब फिरसे छायेगा ।।

कविराज तरुण

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