उर में विराजो महाराज
तुमसे शुरू है हर काज
उर में विराजो महाराज
सूना लगे है दिन आज
सुने से ही पड़े सब साज
उर में विराजो महाराज
जीवन क्या है न जाना मैंने
खुद को भी न पहचाना मैंने
चलता रहा जाने किस धुन पे
तेरी बातो को न माना मैंने
तुमसे छुपा कब ये राज
मेरे छिन ही चुके हैं सब ताज
उर में विराजो महाराज
*सुप्रभात*
*कविराज तरुण*
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