Wednesday, 16 November 2016

उर में विराजो महाराज

उर में विराजो महाराज
तुमसे शुरू है हर काज
उर में विराजो महाराज

सूना लगे है दिन आज
सुने से ही पड़े सब साज
उर में विराजो महाराज

जीवन क्या है न जाना मैंने
खुद को भी न पहचाना मैंने
चलता रहा जाने किस धुन पे
तेरी बातो को न माना मैंने

तुमसे छुपा कब ये राज
मेरे छिन ही चुके हैं सब ताज
उर में विराजो महाराज

*सुप्रभात*
*कविराज तरुण*

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