Tuesday 23 May 2017

प्रेमवृष्टि

*प्रेमवृष्टि*

सावन की ओस से बूँद बूँद पानी
बदरा उलास करे भीगती जवानी
मन की लपट अग्नि बड़ी विकराल सी
लोभ द्वेष तृष्णा से भरे हुए ताल सी
बहकती दहकती चले पग पग धरे
वैर भाव क्रोध मद अतिशोषण करे
ऐसे मे प्रेमवृष्टि से भरी हुई बाल्टी
खग-विहग जीव-जंतु के समक्ष उतार दी
भीग के अपार तर तार-तार कोना
मानवता के बिना धिक्कार नर का होना
छोड़ व्यर्थ ताप छोड़ दे मनमानी
सावन की ओस से बूँद बूँद पानी
बदरा उलास करे भीगती जवानी

*कविराज तरुण 'सक्षम'*

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