Wednesday, 31 May 2017

माँ शारदे वंदन

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शुद्ध पवित्र विचार दीजे
मन में अमृत तार दीजे

वाणी मधुरम चित्त सरगम
भाव में विस्तार दीजे

लेखनी हो सत् समर्पित
सद-आचरण व्यवहार दीजे

हो हृदय नव तरु-मंजरि सा
दल-कमल मुख पर खिले

ये नेत्र देखे बस वहीं
जहाँ सभ्यता आकर मिलें

देह माटी का कलश है
माँ रस सुधा संचार कीजे

वाणी मधुरम चित्त सरगम
भाव में विस्तार दीजे

*कविराज तरुण 'सक्षम'*

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