212 1222 212 1222
बेतुकी मुहब्बत का आज ये जमाना है ।
खामखाँ हसीनो से क्यों नज़र मिलाना है ।।
टूटकर बिखरते हैं ख़्वाब आशियानें के ।
दिल लुटाके' गैरों पे घर कहाँ बनाना है ।।
आशिक़ी फरेबी है जान पर भी' आ जाये ।
अश्क़ से भरा रहता इसमे' आबदाना है ।।
राह मुश्किलों की है हरतरफ सवाली हैं ।
घूरती निगाहों का रोज ही फ़साना है ।।
जो तरुण मुनासिब हो इश्क़ में नही होता ।
डूबकर के' दरिया मे पार तुझको' जाना है ।।
कविराज तरुण 'सक्षम'
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