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जो भी' दिल की' दौलत है इश्क़ की बदौलत है ।
आ ज़रा निगाहों में इसमे' बस मुहब्बत है ।।
खामखाँ करे बातें अपने आप से ही हम ।
नूर सा हसीं चहरा फूल सी नज़ाकत है ।।
है ख़फ़ा ख़ुदा मुझसे तुझको जो खुदा माना ।
इश्क़ है मिरा मज़हब इश्क़ ही इबादत है ।।
बेदिली न दिल समझे बेरुखी न हो पाये ।
हर अदा नवाजी है आशिक़ी इनायत है ।।
नाम तेरा' ले लेकर जी रहा *तरुण* ऐसे ।
साँस मुझको' लेने की अब कहाँ जरूरत है ।।
कविराज तरुण 'सक्षम'
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