Monday, 6 November 2017

ग़ज़ल 60 बेजुबाँ

212 212 212 212

महफिलों में रहा बेजुबाँ की तरह ।
बादलों से ढके आसमाँ की तरह ।।

कोई' तस्वीर तेरी दिखाता नही ।
जिंदगी हो गई अब धुआँ की तरह ।।

कहकशे खूब लगते थे' हर बात पे ।
आज बातें हुई खामखाँ की तरह ।।

सुन के आता रहा चीख़ दीवार पर ।
दिल हुआ खंडहर के मकाँ की तरह ।।

उन निगाहों ने' रुसवा किया यूँ *तरुण* ।
ख़ुश्क सा फिर हुआ मै खिजाँ की तरह ।।

*कविराज तरुण 'सक्षम'*

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