212 212 212 212
महफिलों में रहा बेजुबाँ की तरह ।
बादलों से ढके आसमाँ की तरह ।।
कोई' तस्वीर तेरी दिखाता नही ।
जिंदगी हो गई अब धुआँ की तरह ।।
कहकशे खूब लगते थे' हर बात पे ।
आज बातें हुई खामखाँ की तरह ।।
सुन के आता रहा चीख़ दीवार पर ।
दिल हुआ खंडहर के मकाँ की तरह ।।
उन निगाहों ने' रुसवा किया यूँ *तरुण* ।
ख़ुश्क सा फिर हुआ मै खिजाँ की तरह ।।
*कविराज तरुण 'सक्षम'*
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