हास्य/व्यंग - नेता
न इत था न उत था
लंगोटी में बुत था
जुबां चल रही थी
नशे में भी धुत था
वो ऊपर मै नीचे
गनर दो ठौ पीछे
बोलूँ तो डर हो
जुबां को न खींचे
कहा उसने भाया
कि क्या काम आया
क्यों इतने हो व्याकुल
चढ़ा कोई साया ?
न साया न प्रेत
सूखा है खेत
बिजली नही है
गमो की चपेट
मै बोला ओ मालिक
रहम की सिफारिश
न सुविधा न बारिश
करूँ क्या गुजारिश
करो कुछ तो बेहतर
सड़क भी नही है
न दवा का ठिकाना
क्या ये सही है
विद्यालय की दूरी
कई मील पर है
सर तो कई हैं
नही कोई घर है
झल्लाकर के नेता
गुस्से से देखा
मेरे गाल पे फिर
पड़ा एक चपेटा
वो बोला मै कोई
विधाता नही हूँ
बिना कुछ दिये
सीट पाता नही हूँ
चुनाव के चक्कर मे
उधारी हुई है
जन्नत की तब ये
सवारी हुई है
मै बोला वहीं
दोनों हाथ जोड़े
इंसां भी बन लो
ज़रा थोड़े थोड़े
बड़े प्यार से तुम
वोट हमसे चुराते
और जब काम आये
तो हमको डराते
नही होगी अब ये
गलती दोबारा
खुदा भी न देंगे
अब तुमको सहारा
कविराज तरुण 'सक्षम'
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