प्रियमिलन
कोटि कोटि देख द्वार
नख शिख है श्रृंगार
दृष्टि में असीम प्यार
प्रिय को पुकारती ।
एकटक ही वो नार
पट खोल बार बार
दूर तक आर पार
पंथ को निहारती ।।
नैन जो हुये हैं चार
ख़ुशी अगम अपार
प्रेमरस की फुहार
आँख से निकालती ।
हृदय के तंतु तार
तनमन के विचार
रक्त की प्रत्येक धार
जैसे करें आरती ।।
कविराज तरुण
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