मातृभूमि के हे रखवाले ! तुमको वापस आना होगा ।
बूढ़ी माँ के सपनों का , कुछ तो कर्ज चुकाना होगा ।।
लहू बहा है मेरे घर में , मैंने बेटा खोया है ।
आँख से आँसूँ सूख चुके हैं , मन भीतर से रोया है ।
पीड़ित अपनी पीड़ा से , देखो न दुखियारी हूँ ।
बस एक बेटा था जीवन मे , उसको भी अब हारी हूँ ।
इस पीड़ा में मर न जाऊं , क्या खोना क्या पाना होगा ।
मातृभूमि के हे रखवाले ! तुमको वापस आना होगा ।।
मेरे लाल की अर्थी पर , लाल रक्त के छींटें हैं ।
छुट्टी उसकी खत्म हुए , कुछ ही दिन तो बीतें हैं ।
शादी का बोला था उसने , माँ अगली बारी कर लूँगा ।
बहू करेगी सेवा तेरी , और एक प्यारा घर लूँगा ।
नही चाहिए मुझको कुछ भी , पत्थर ही बन जाना होगा ।
मातृभूमि के हे रखवाले ! तुमको वापस आना होगा ।।
वो दानव जो रक्त के प्यासे , सरहद पर इतराते होंगे ।
उनसे कह दो वध करने अब , बेटे मेरे आते होंगे ।
प्रतिशोध भरे तन मन मे काली , माँ का स्वर ललकार उठा ।
शिव का डमरू बजा है रण में , हर बालक हुँकार उठा ।
चुन चुनकर हर दानव को , सबक अभी सिखलाना होगा ।
मातृभूमि के हे रखवाले ! तुमको वापस आना होगा ।।
कविराज तरुण
यूको बैंक
समेशी शाखा -1260
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