Thursday, 21 February 2019

बेटियाँ

विधाता छंद

नही बेबस कहानी का रहीं किरदार बेटियाँ
जहाँ जाती बनाती हैं वहीं परिवार बेटियाँ
पराया धन कहो क्यों तुम यहीं हैं रूप लक्ष्मी का
यही नवरात की देवी यही हैं पर्व दशमी का

पिता की लाडली हैं ये यही माँ का सहारा हैं
यही हैं चाँदनी घर की चमकता सा सितारा हैं
नही घर में अगर बेटी हुआ फिर व्यर्थ जीवन भी
इन्ही के पाँव से आती बहारें और सावन भी

कविराज तरुण

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