हमारे ब्याह की बातें सभी क्या याद हैं शोना
पकड़के हाथ बोला था जुदा हमको नही होना
चले थे सात फेरों में कई सपने सुहागन के
मिला था राम जैसा वर खुले थे भाग्य जीवन के
ख़ुशी के थार पर्वत सा हुआ तन और मन मेरा
मुझे भाया बहुत सच में तुम्हारे प्यार का घेरा
कलाई पर सजा कंगन गले का हार घूँघट भी
समझता अनकही बातें समझता मौन आहट भी
मगर संदेश जब आया हुआ आतंक पुलवामा
थमी साँसे जमी नजरें उठा हर ओर हंगामा
हुआ सिंदूर कोसो दूर मेरा छिन गया सावन
सुनाई दे रही चींखें बड़ा सहमा पड़ा आँगन
बुला पाओ बुला दो जो गया है छोड़ राहों में
सभी यादें सिसक कर रो रही हैं आज बाहों में
तिरंगे में लिपटकर देह आई द्वार पर माना
वतन पर जान दी तुमने मुझे है गर्व रोजाना
कविराज तरुण
आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति 88वां बलिदान दिवस - पंडित चंद्रशेखर आजाद जी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। एक बार आकर हमारा मान जरूर बढ़ाएँ। सादर ... अभिनन्दन।।
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