कुछ इसकदर उस सख्स ने तोड़ा मुझे साहब पूछो नही किस काम का छोड़ा मुझे साहब कश्ती भँवर के बीच मे उलझी रही मेरी इस गर्त में क्यों खामखां मोड़ा मुझे साहब
कविराज तरुण
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