Sunday, 28 September 2025

इतना तो आसान नही है

लिपटी है सीने से मेरे, कैसे छोड़ के जाऊँ मै 
पापा-पापा रटती है वो क्या उसको समझाऊं मै

पापा जितने प्यारे हैं उतने तो भगवान नही हैं 
छोड़ के आना बच्चे को इतना तो आसान नही है

जब उसको अपने मन की इच्छा पूरी करवानी हो 
या फिर कोई नया गेम या नई चीज मंगवानी हो
धीमे से कहकर कानों में पढ़ने वो लग जाती है
'पापा सब दिलवायेंगे' ये कहकर वो इतराती है 

अब उसकी इच्छा के आगे मेरा कुछ अरमान नही है 
छोड़ के आना बच्चे को इतना तो आसान नही है

मासूम सवालों से उसने अक्सर ही चौकाया है 
कान्हा ने क्यों चुरा चुरा के माखन इतना खाया है
श्री राधा रानी की सखियां काहें इतनी सारी थीं 
गईया को मुरली की धुन क्यों लगती इतनी प्यारी थी 

इन प्रश्नों का क्या उत्तर दूँ इतना मुझमे ज्ञान नही है 
छोड़ के आना बच्चे को इतना तो आसान नही है

चाहे रात में निकलो लेकिन पापा मुझे उठाकर जाना 
अगली बारी आओगे कब? ये भी ज़रा बताकर जाना
मै मन लगाकर पढ़ती हूँ पापा अच्छे से रहती हूँ 
पर छुट्टी जिस दिन होती है मै राह तुम्हारी तकती हूँ

प्यार छुपा जो बातों में उसका कोई अनुमान नही है 
छोड़ के आना बच्चे को इतना तो आसान नही है

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