नववर्ष आगमन
रश्मियाँ भोर की कल भी आएँगी पर
रात स्वप्निल सुधा से अमर कर दो
सोच लो ठान लो मन का संज्ञान लो
इस हिमालय से ऊँचा ये सर कर दो
काल के द्वार पर हिय का दरबार है
आत्म मंथन से संभव ही उद्धार है
नेत्र अंजलि पर दीप की रोशिनी
वाणी इतनी सहज शक्कर की चासनी
तेज माथे पर और होंटो पर मुस्कान हो
सुख समृद्धि सुयश का नववर्ष पहचान हो
इन विचारों का ह्रदय में आज घर कर दो
रात स्वप्निल सुधा से अमर कर दो
--- कविराज तरुण
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