रंग केसरी कर देना
ऐ मौला मेरे कभी देश पर दाग नही लगने देना
चाहे देना न तुम रंग गुलाबी पर रंग केसरी कर देना
किस्से कसमे शहादत की घर घर को याद जुबानी है
माथे पर हिन्द की अस्मत है हाथो में गंगा का पानी है
इस पानी सा पावन निर्मल हर कोना कोना भर देना
चाहे देना न तुम रंग गुलाबी पर रंग केसरी कर देना
उसपार ज्वाल की लपट बहे तो सरहद पर मै अंगार भरूँ
इस मातृभूमि की मिट्टी से मै अपना श्रृंगार करूँ
कि जबतक रुधिर शेष छिद्रों मे तुम लड़ने का ही बल देना
चाहे देना न तुम रंग गुलाबी पर रंग केसरी कर देना
सन्नाटों में दरबार लगाकर दुश्मन नित कितनी चाल चले
बैसाखी पर चलने वाले ये हम तूफानों से क्या खाक लड़ें
अब अर्थी बन जाएगी इनकी मुझे हिम्मत और असर देना
चाहे देना न तुम रंग गुलाबी पर रंग केसरी कर देना
हम मित्र बना लेते बेशक पर तेरी रूह मे गद्दारी है
पीठ में खंजर भोंकने की तुझको बड़ी बीमारी है
इस बीमारी को काट के दूर करूँ मौला ऐसा खंजर देना
चाहे देना न तुम रंग गुलाबी पर रंग केसरी कर देना
हम राजनीति से शोषित हैं पर है देशप्रेम की कमी नही
हिन्दुस्तान हमारी माता है केवल ये एक जमीं नही
जो इसको आँख दिखायेगा उसको बिन धड़ के सर देना
चाहे देना न तुम रंग गुलाबी पर रंग केसरी कर देना
--- कविराज तरुण
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