तुम बोलती रहो मै सुनता रहूँ ।
प्यार की तह्मते यूँही बुनता रहूँ ।
तुमसे अलग कुछ भी सोचा नही ...
आयतें इश्क की यूँही लिखता रहूँ ।।
चल ज़रा साथ चल
ना इधर ना उधर
ये बता दिल तेरा
मुझको सोचे अगर
तो भला क्या मेरा
प्यार आये नज़र ।
तू हसीं मै नही
और अदा लाज़मी
मंद मुस्कान है
और लबों पर नमी
तू सुबह ओस की
अब्र सी सादगी ।
छू के देखूँ तुझे या मै तकता रहूँ ।
पास आऊ तेरे या भटकता रहूँ ।
शाम की शबनमी वादियां कह रही ...
आयतें इश्क की यूँही लिखता रहूँ ।।
कविराज तरुण
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