Saturday 27 December 2014

घर नही आये

वो भी किसी माँ के बेटे होंगे ।
उनके आँसू कभी आँचल ने लपेटे होंगे ।
उनकी ऊँगली वालिद ने थामी होगी ।
उनके घर मे भी मौसी और मामी होगी ।
जाने किसने सबक वैहशी ये सिखाया उनको ।
अपनी माटी का नमक याद ना आया उनको ।
खून के छींटे भी उनको नज़र नही आये ।
स्कूल गए थे वो बच्चे घर नही आये ।
दनादन गोलियाँ मासूमो पर बरसाई कैसे ।
चीख उनकी इनके कानो तक ना आई कैसे ।
उनकी आवाज़ मे रहम की गुजारिश ना देखी ।
या उनकी निगाहों मे आँसुओं की बारिश ना देखी ।
या दिल था पत्थर का या हैवान थे वो ।
मुझे यकीन है नही ज़रा भी इंसान थे वो ।
इतनी बेदर्दी से किसी ने कहर नही ढाये ।
स्कूल गए थे वो बच्चे घर नही आये ।

कविराज तरुण

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