घास थी हवा थी हवा में खुशबू और जल था
बहुत रमणीक स्थल था
मै गुजरा वहाँ से पर गुजर ना पाया
कुछ फल लाये थे बैठा और खाया
घास को बिस्तर समझकर मै सो गया
देखते ही देखते अँधेरा हो गया
फिर मै उठा आनन फानन में जेब टटोली मोबाइल निकाला
सैकड़ों मिस कॉल पड़ी थी - घर ऑफिस दोस्त यार कुरियर वाला
पीछे मुड़कर देखा तो दो गिलहरी आपस में खेल रहीं थीं
बड़ा खूबसूरत वो पल था
बहुत रमणीक स्थल था
खैर! इस पल को कहकर अलविदा
मै उठा और वापस चल दिया
मन में लाखों सवाल थे कि सबको मै क्या बताऊँगा
जो ठहराव मैंने आज महसूस किया उसे कैसे जताऊंगा
चिंता की रेखाएं मेरे माथे पर आ गईं
खूबसूरत पलों पर जैसे बदली छा गईं
मै तबीयत का बहाना बनाकर चुपचाप अपने घर में सो गया
एक रात गुजरी एक नया सबेरा फिर से हो गया
पर मेरे मन में जीवित मेरा बीता हुआ कल था
बहुत रमणीक स्थल था
घास थी हवा थी हवा में खुशबू और जल था
बहुत रमणीक स्थल था
कविराज तरुण
No comments:
Post a Comment