Tuesday, 3 December 2024

बहुत रमणीक स्थल था

बहुत रमणीक स्थल था 
घास थी हवा थी हवा में खुशबू और जल था 
बहुत रमणीक स्थल था 
मै गुजरा वहाँ से पर गुजर ना पाया 
कुछ फल लाये थे बैठा और खाया
घास को बिस्तर समझकर मै सो गया 
देखते ही देखते अँधेरा हो गया
फिर मै उठा आनन फानन में जेब टटोली मोबाइल निकाला 
सैकड़ों मिस कॉल पड़ी थी - घर ऑफिस दोस्त यार कुरियर वाला
पीछे मुड़कर देखा तो दो गिलहरी आपस में खेल रहीं थीं 
बड़ा खूबसूरत वो पल था
बहुत रमणीक स्थल था 
खैर! इस पल को कहकर अलविदा 
मै उठा और वापस चल दिया
मन में लाखों सवाल थे कि सबको मै क्या बताऊँगा 
जो ठहराव मैंने आज महसूस किया उसे कैसे जताऊंगा 
चिंता की रेखाएं मेरे माथे पर आ गईं 
खूबसूरत पलों पर जैसे बदली छा गईं 
मै तबीयत का बहाना बनाकर चुपचाप अपने घर में सो गया 
एक रात गुजरी एक नया सबेरा फिर से हो गया 
पर मेरे मन में जीवित मेरा बीता हुआ कल था 
बहुत रमणीक स्थल था 
घास थी हवा थी हवा में खुशबू और जल था 
बहुत रमणीक स्थल था

कविराज तरुण 

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