और दो चार कदम चल के देखते हैं
वो कौन है जिसकी मलकियत है मंजिल पर
आओ उसका चेहरा बदल के देखते हैं
ख़्वाब में अक्सर अपना घर बनाने वालों
हम ख़्वाब देखते हैं तो महल के देखते हैं
दिल को समझा रखा है किस बात के लिए
दिलवालों के दिल तो मचल के देखते हैं
क्यों चकाचौंध है तेरे वजूद के इर्द गिर्द
क्यों लोग तुझे आँखें मल मल के देखते हैं
तुम शमा के जैसे रौशन हो शामियाने में
हम परवाने तेरी आग में जल के देखते हैं
तेरे इंतज़ार में मै रो भी नही सकता
मेरे कुछ यार मेरी पलकें देखते हैं
अब तो दौलत भी किसी काम की नही
गुड्डे गुड़ियों में फिर से बहल के देखते हैं
कागज़ की नाँव बनाये ज़माना बीत गया
बारिश है.. नंगे पाँव टहल के देखते हैं
आतिशबाजी है शोर है हिदायत भी है
पर बच्चे कहाँ तमाशा संभल के देखते हैं
अपनी हद से आगे निकल के देखते हैं
और दो चार कदम चल के देखते हैं
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