कि तू आएगी तो तुझे देके इसको मै अपनी मोहब्बत मुकम्मल करूँगा
मुसलसल करूँगा मै वो कोशिशेँ भी
जो तन्हाईयों में इबादत करे
या कि बेचैनियों में हिमाकत करे
क्योंकि मुझको यकीं है कि इतनी मोहब्बत
वो भी इतने दिनों से फकत माह सालों से या कि सदी से
वो भी इस ताज़गी से
बड़ी सादगी से
भला कोई कैसे कहाँ से करेगा
मुसलसल करूँगा मै वो कोशिशेँ भी
जो मजनू ने लैला की खातिर नही की
कोशिश जो राँझे ने आखिर नही की
कोशिश जो उन पगडंडियों को बना दे दोबारा जहाँ से मोहब्बत को राहें मिली थीं
निगाहें मिली थीं जहाँ पे हमारी और क्या खूब बाहों को बाहें मिली थीं
कोशिश, चिरागों से उस आसमां को दिखाना कि इक चाँद है इस जमीं पर
जिसने सितारों में मुझको चुना था
तेरी स्याह रातों में सपना बुना था
मगर कुछ वजह ऐसी आई थी शायद
मोहब्बत को परदे में रखना पड़ा था
यही लफ्ज़ जाने से पहले कहा था
और ये भी कहा था मै आऊंगी एक दिन
तुम्हारे हवाले ये दिन रात करने
खतम जो ना हो वो मुलाक़ात करने
यही सोचकर मैंने दिल की इबारत को रखा है महफूज़ इक डायरी में
कि तू आएगी तो तुझे देके इसको मै अपनी मोहब्बत मुकम्मल करूँगा
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