न छीना मैंने कुछ न उसने कुछ पाया
दो कदम मोहब्बत के चलने में वो घबराया
मेरे घर में भी बंदिश थी रश्मो के हवालों से
मै भी डर सकता था लोगों के सवालों से
कुछ अपने मेरे भी नाराज बहुत होते
कुछ पल जीवन के यूँही अनबन में खोते
घर छोड़ के जाने को कबसे मै राज़ी था
दूल्हा दुल्हन खुश रहते क्या करना क़ाज़ी का
पर तुमने न जाने क्यों चुप्पी नही तोड़ी
अपनी प्रेमकहानी का एक लफ्ज़ नही बोली
न मुझसे कहा ही कुछ न खुद को समझाया
दो कदम मोहब्बत के चलने में वो घबराया
कविराज तरुण
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