मन अब कमजोर सा हो गया है
राग रंग एक शोर सा हो गया है
वो भूले मुझे और भूलते ही गये
हाल मेरा गुजरे दौर सा हो गया है ।
किसी कोने में दिल के तू रह गई
जैसे बचपन मे सुनी कहानी कोई
थक गया रात भर मै जाग कर
सूरज बिना भोर का हो गया है ।
मन अब कमजोर सा हो गया है ।।
मेरी बातें तुझे याद आती नही
मेरी फ़रियाद खुदा तक जाती नही
खुद से ख़फ़ा रहूँ मै बेवज़ह
कदमो से ओझल ठौर सा हो गया है ।
चेहरे की रंगत सिलवट मे सिमटी
मेरी हसरते तेरी आहट से लिपटी
जो हो ना सकेगा ऐसी चाहत मे जीवन
सावन के अंधे मोर सा हो गया है ।
मन अब कमजोर सा हो गया है ।।
कविराज तरुण
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