Saturday 16 June 2018

ग़ज़ल 98 - सफर भी है

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है दुआ तेरी तो सफर भी है , इन मंजिलों की ख़बर भी है ।
है नज़र नज़र मे चिराग ये , इक रौशिनी मे शहर भी है ।।

दिल हसरतों के दबाव में , जब आशिक़ी करने चला ।
घर के तेरे हर मोड़ पर , ठहरी हुई ये नजर भी है ।।

न दुआ मिले न दवा मिले , न तो मर्ज का ही पता मिले ।
मै बचूं कहाँ बतलाइये , मदहोश सा ये असर भी है ।।

ये उठी गिरी फिर मिल गई , लो खिली खिली फिर खिल गई ।
ये निगाह का ही कसूर है , सब ओर इसका कहर भी है ।।

है बची कहीं फिर आग ये , जो धुआँ उठा है मकान से ।
अरमान के इस हर्फ़ मे , उलझी मेरी ये बहर भी है ।।

कविराज तरुण

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