Friday, 15 June 2018

बैंक आय वृद्धि माँग

दो आय अगर तो पूरी दो,
पर, इसमें भी मज़बूरी हो,
तो दे दो केवल उचित दाम,
रक्खो अपने पैसे तमाम।
हम वही खुशी से खायेंगे,
कोई प्रश्न नही उठायेंगे!
सत्तादल वह भी दे ना सका,
आशीष समाज की ले न सका,
उलटे, हमको बाँधने चला,
जो था असाध्य, साधने चला।
तब नाश समाज पर छाता है,
जब बैंकर सड़कों पे आता है ।
बैंकर ने भीषण हुंकार किया,
अपना स्वरूप-विस्तार किया,
डगमग-डगमग दिग्गज डोले,
कर्मचारी कुपित होकर बोले-
‘जंजीर बढ़ा कर साध मुझे,
हाँ, हाँ सत्तादल ! बाँध मुझे।
देखो जनधन मुझमें लय है,
अटल पेंशन मुझमें लय है,
मुझमें विलीन हैं लोन सकल,
मुझमें लय है उत्थान सकल।
ये देश जानता है कबसे,
ये देश मानता है कबसे ।

याचना नहीं, अब रण होगा,
हिसाब यहां कण कण होगा ।
हम सड़को पर आ जायेंगे,
तो अर्थजगत हिल जाएंगे ।
सिस्टम ये भूषायी होगा,
हिंसा का परदायी होगा ।
तुम हमे रोक न पाओगे,
कैसे ये देश चलाओगे ।

सुनो जरा सा ध्यान धरो,
अब अनुसंशा का संज्ञान करो ।
तब सब अच्छा हो जाएगा,
बैंकर निज कर्म निभाएगा ।

कविराज तरुण

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