*काजल*
काजल सी ये काली रैना
जी अतिशय घबराये ।
घोर अमावस में जाने क्यों
चंद्र नजर नही आये ।।
काजल सी काली कोयल
गीत मधुरतम गाये ।
कौवा काला फिर जाने क्यों
कर्कश ही रह जाये ।।
काजल सा काला मेघ जगत में
वर्षा की बूँदें लाये ।
पर चिमनी की धुंध कालिमा
क्यों केवल प्राण सुखाये ।।
काजल सा काला जामुन देखो
शक्कर सा स्वाद दिलाये ।
पर ये काली मिर्च बता क्यों
तीखापन बहुताये ।।
काजल सा काला पत्थर ये
मंदिर में सुधि पाये ।
काला कोयला पर चुनचुन कर
भट्टी में झोंका जाये ।।
काजल से काली आँखें प्रिय की
प्रेमसुधा बरसाये ।
काला मन भीतर का फिर क्यों
पल पल आग लगाये ।।
इस काले का कोई भेद नही
काजल हमको बतलाये ।
चक्षुपटल पर चुभता काजल
श्वेत अश्रु संग लाये ।।
कविराज तरुण 'सक्षम'
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