*ग्रीष्म*
ताप धुआँधार हुआ
सीमा लाँघ पार हुआ
गल रहा रोम रोम
कोई तो बचाईये ।
शुष्कता की रीत चली
पाती होके पीत जली
जल गया व्योम व्योम
आग ये मिटाईये ।।
ग्रीष्म हाहाकार करे
आंकड़ों को पार करे
देह ये बनी है मोम
और न गलाईये ।
एक ही उपाय शेष
जीव जंतु व विशेष
कह रहा नित्य सोम
पेड़ तो लगाईये ।।
कविराज तरुण
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