Friday, 15 June 2018

घनाक्षरी - ग्रीष्म

*ग्रीष्म*

ताप धुआँधार हुआ
  सीमा लाँघ पार हुआ
    गल रहा रोम रोम
      कोई तो बचाईये ।

शुष्कता की रीत चली
  पाती होके पीत जली
    जल गया व्योम व्योम
      आग ये मिटाईये ।।

ग्रीष्म हाहाकार करे
  आंकड़ों को पार करे
    देह ये बनी है मोम
      और न गलाईये ।

एक ही उपाय शेष
  जीव जंतु व विशेष
    कह रहा नित्य सोम
      पेड़ तो लगाईये ।।

कविराज तरुण

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