रात ……
रात की तन्हाई में अक्सर यह आंख नम हो जाती है !
हर सुबह से फिर ख़ुशी पूछती है क्यूँ यह रात आती है !!
कि जबतक इश्क होता है
, रात मदहोश रहती है
!
जब दिल टूट जाता है
, रात मायूस रहती है
!
वर्ना रात तो बस रात बनकर खामोश रहती है
!!
वो चाँद खुद को दूंड़ता
है रात
कि गहराई में !
यह चाँद भी खो गया है रात कि तन्हाई में !
कहो कि कितने आंसू को
छिपाया आजतक शहनाई ने
!
आधा जीवन रात है आधा इस परछाई
में !!
रात है वीरान सफ़र , आंख
से टपके अश्रु सा
!
जिसमे जीवन तो नहीं पर प्रतीक
है जीवन का !
ये आंसू कुछ और नहीं पारे के कण ही तो हैं
!
जो रात के गुजरे कुछ क्षण ही तो हैं
!
यह कैसा इत्तेफाक है ……….
जहाँ आंसू हैं
वहां रात है !
फिर सुबह को कौन पैगाम
दे !
आंसू को रात कहकर हम तो एहतराम दे !!
नज़्म ………
वो बड़े लकीरवाले होंगे जिन्हें सुबह नसीब होगी !!
अपनी तो रात में कटी ज़िन्दगी
रात ही सदा करीब होगी !!~!!
------------ कविराज तरुण
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