शराब
अगर बोतलों में शराब न होती... तो गालिब की शोहरत आफताब न होती....
न होता साकी न होती हाला... न होती बच्चन की मधुशाला...
फिर न होती ग़ज़ल पैमाने पे... हाल-ए-दिल का बयां मैखाने में...
फिर नशे की कोई बात नहीं होती... टूटे दिल की कभी कोई रात नहीं होती...
होता किताबो से ओझल देवदास का किस्सा... प्यार रहता कभी न इतिहास का हिस्सा…
न होती महफिल न होती सरगम... न होती गज़ले न दोस्त न हमदम...
शुक्र है आज हाथो में मेरे जाम है... कौन कहता है मय ये बदनाम है...
कौन कहता है मय ये बदनाम है...
--------- कविराज तरुण
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