रचना 01
दायित्व
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दायित्व का निर्वाह जरुरी है
जरुरी है कर्म का बोध ।
मन कुण्ठित हो जाता है अक्सर
जब आता अहम् व लोभ ।
चाहे जीवन ब्रह्मचर्य हो गृहस्थ हो
या हो सन्यास ।
चाहे राह कठिन हो सख्त हो
या हो बिंदास ।
अनुशासन के बिन संभव कुछ नहीं
बस इतना कर पाया शोध ।
दायित्व का निर्वाह जरुरी है
जरुरी है कर्म का बोध ।
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✍🏻क. तरुण
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