Tuesday, 26 July 2016

लिखना छोड़ दूँ

लिखना छोड़ दूँ

कहो जो तुम तो मै लिखना छोड़ दूँ
या यूँ सरेआम बिकना छोड़ दूँ
पहले जब कुछ चुभता था तो कलम उठती थी
अब जब कलम उठती है तो कुछ चुभता है
तेरे ख्वाबो में बेवजह यूँ मै दिखना छोड़ दूँ
कहो जो तुम तो मै लिखना छोड़ दूँ
असर होता नही जब भी सुनाता गीत मै प्यारा
न कश्ती ही मिली न मिल पाया ही किनारा
तुम क्या समझ पाओगे मेरी चाहत का ईशारा
कल भी आवारा था आज भी हूँ मै आवारा
तेरी गलियों से कहो तो गुजरना छोड़ दूँ
कहो जो तुम तो मै लिखना छोड़ दूँ

✍🏻कविराज तरुण
https://m.facebook.com/KavirajTarun/

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