Tuesday, 26 July 2016

हिंदी

रचना 01

भाल मस्तक पर सजे ज्यों बिंदी
माँ भारती के लिए स्थान है वह हिंदी

रोली चन्दन का जांच ज्यों टीका
बस वही अभिप्राय है हिंदी का

अब ये अस्मत ये ही इज्जत मान दो
संभव जितना हो सके हिंदी का ज्ञान दो

भाषा है ये वेद की पुराण की
भाषा है ये नवभारत निर्माण की

हिंदी जननी है समस्त संस्कार की
द्योतक है यह सभ्यता व्यवहार की

उर में बसा के सन्मुख विस्तार दो
अपने हर कार्य में हिंदी उदगार दो

✍🏻 कविराज तरुण

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