रचना 01
भाल मस्तक पर सजे ज्यों बिंदी
माँ भारती के लिए स्थान है वह हिंदी
रोली चन्दन का जांच ज्यों टीका
बस वही अभिप्राय है हिंदी का
अब ये अस्मत ये ही इज्जत मान दो
संभव जितना हो सके हिंदी का ज्ञान दो
भाषा है ये वेद की पुराण की
भाषा है ये नवभारत निर्माण की
हिंदी जननी है समस्त संस्कार की
द्योतक है यह सभ्यता व्यवहार की
उर में बसा के सन्मुख विस्तार दो
अपने हर कार्य में हिंदी उदगार दो
✍🏻 कविराज तरुण
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