Monday, 2 January 2017

धुंध

धुंध

इस धुंध को थोड़ा हट जाने दो
राह नज़र भी आयेगी
पाती पाती पग पोछेगी
पाथर की पीर मिटायेगी

हो विस्मित क्यों अँधियारे से
सूरज की रश्मी आने दो
निष्काम निवृत्ति निराशित नर
आशाओं का दीप जलाने दो

है छलनी मन बिनरस जीवन
तिमिर रेख में धुँधला आँगन
संकल्प साध सुरमय सावन
कर निर्भय हो तनमन पावन

फिर ओस जमेगी पल्लव पर
तरु डाली थोड़ा झुक जायेगी
इस धुंध को थोड़ा हट जाने दो
राह नज़र भी आयेगी

कविराज तरुण सक्षम
9451348935

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