धुंध
इस धुंध को थोड़ा हट जाने दो
राह नज़र भी आयेगी
पाती पाती पग पोछेगी
पाथर की पीर मिटायेगी
हो विस्मित क्यों अँधियारे से
सूरज की रश्मी आने दो
निष्काम निवृत्ति निराशित नर
आशाओं का दीप जलाने दो
है छलनी मन बिनरस जीवन
तिमिर रेख में धुँधला आँगन
संकल्प साध सुरमय सावन
कर निर्भय हो तनमन पावन
फिर ओस जमेगी पल्लव पर
तरु डाली थोड़ा झुक जायेगी
इस धुंध को थोड़ा हट जाने दो
राह नज़र भी आयेगी
कविराज तरुण सक्षम
9451348935
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