Thursday, 5 January 2017

ग़ज़ल लीजिये जी

एक प्रयास

ग़ज़ल : लीजिये जी
बहर : 122 122 122 122
रदीफ़ : लीजिये जी
काफिया : थ

हिमालय से' ऊँचा ये' कद कीजिये जी ।
बदलने समय की शपथ लीजिये जी ।।

अगर हो सुराही भी' पानी की' प्यासी ।
डुबोकर के' पनघट मे' मथ लीजिये जी ।।

नही है मुनासिब यूं' घुट घुट के मरना ।
गिराकर दिवारों से' पथ लीजिये जी ।।

गिरें जो इरादों से' अपने हवाले ।
मुमकिन अगर हो तो' रथ लीजिये जी ।।

कविराज तरुण सक्षम

No comments:

Post a Comment