एक प्रयास
ग़ज़ल : लीजिये जी
बहर : 122 122 122 122
रदीफ़ : लीजिये जी
काफिया : थ
हिमालय से' ऊँचा ये' कद कीजिये जी ।
बदलने समय की शपथ लीजिये जी ।।
अगर हो सुराही भी' पानी की' प्यासी ।
डुबोकर के' पनघट मे' मथ लीजिये जी ।।
नही है मुनासिब यूं' घुट घुट के मरना ।
गिराकर दिवारों से' पथ लीजिये जी ।।
गिरें जो इरादों से' अपने हवाले ।
मुमकिन अगर हो तो' रथ लीजिये जी ।।
कविराज तरुण सक्षम
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