ग़ज़ल (बहर 122 122 122 122)
अजी आप भी आके इस दिल मे रहिये ।
जुबां के बिना ही निगाहों से कहिये ।।
नहीं और कुछ भी है मुझको सहारा ।
मेरी धड़कनों को ज़रा आप सुनिये ।।
अजी आप भी आके इस दिल मे रहिये ।
मुलाक़ात की कोई सूरत नही है ।
ये माना हमारी जरूरत नही है ।।
घनी भीड़ लगती सदा ही तुम्हारे ।
मगर पास आके दो पल ठहरिये ।।
अजी आप भी आके इस दिल मे रहिये ।
कविराज तरुण सक्षम
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