Tuesday, 3 January 2017

ग़ज़ल अजी आप भी

ग़ज़ल (बहर 122 122 122 122)

अजी आप भी आके इस दिल मे रहिये ।
जुबां के बिना ही निगाहों से कहिये ।।
नहीं और कुछ भी है मुझको सहारा ।
मेरी धड़कनों को ज़रा आप सुनिये ।।

अजी आप भी आके इस दिल मे रहिये ।

मुलाक़ात की कोई सूरत नही है ।
ये माना हमारी जरूरत नही है ।।
घनी भीड़ लगती सदा ही तुम्हारे ।
मगर पास आके दो पल ठहरिये ।।

अजी आप भी आके इस दिल मे रहिये ।

कविराज तरुण सक्षम

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