*ग़ज़ल -- मुहब्बत दुबारा*
बहर -122 122 122 122
रदीफ़ - दुबारा
काफिया - त
मिलेगी नही ये मुहब्बत दुबारा ।
करेंगे नही फिर इबादत दुबारा ।।
ये' माना सफर में कई हमसफ़र हैं ।
चलेंगे नही पर नसीहत दुबारा ।।
है' मिलता कहाँ अब शरीफो को' मौका ।
करेंगे नही हम शराफ़त दुबारा ।।
अगर दिल की' बाते ये' तुम जान जाती ।
न करती ज़रा भी बगावत दुबारा ।।
न समझा सकूँगा मै' कुछ भी यहाँ पर ।
जुबां से समझ लो ये' चाहत दुबारा ।।
मिलेगी नही ये मुहब्बत दुबारा ।
करेंगे नही फिर इबादत दुबारा ।।
कविराज तरुण सक्षम
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