Wednesday, 4 January 2017

ग़ज़ल दुबारा

*ग़ज़ल -- मुहब्बत दुबारा*

बहर -122 122 122 122
रदीफ़ - दुबारा
काफिया - त

मिलेगी नही ये मुहब्बत दुबारा ।
करेंगे नही फिर इबादत दुबारा ।।

ये' माना सफर में कई हमसफ़र हैं ।
चलेंगे नही पर नसीहत दुबारा ।।

है' मिलता कहाँ अब शरीफो को' मौका ।
करेंगे नही हम शराफ़त दुबारा ।।

अगर दिल की' बाते ये' तुम जान जाती ।
न करती ज़रा भी बगावत दुबारा ।।

न समझा सकूँगा मै' कुछ भी यहाँ पर ।
जुबां से समझ लो ये' चाहत दुबारा ।।

मिलेगी नही ये मुहब्बत दुबारा ।
करेंगे नही फिर इबादत दुबारा ।।

कविराज तरुण सक्षम

No comments:

Post a Comment