Saturday, 11 August 2018

ग़ज़ल 99 बड़ी बेबसी थी

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बड़ी बेबसी थी बड़ी बेकली थी ।
मुहाने ख़ुशी के वो देखो चली थी ।।

वो चलने लगी पाँव अपने उठाकर ।
सजी सामने आज सारी गली थी ।।

थी तैयार वो संग काँटो पे चलने ।
बड़े नाज से जो अभी तक पली थी ।।

मगर कुछ हुआ मान के मकबरे में ।
ये दुश्मन ज़माना मची खलबली थी ।।

बना फिर वहाँ इस मुहब्बत का मलबा ।
रिवाजों के चलते वो धूं धूं जली थी ।।

कविराज तरुण

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