*सुप्रभात लिए एक आस एक प्रश्न*
क्यों इसकदर मायूस है तू
दहलीज पर क्यों गुमसुम खड़ी है
शिकन संकोच की अनगिनत रेखाएँ
आखिर क्यों तेरे माथे जड़ी हैं
क्यों ये नियम ये रश्में तेरे हवाले
क्यों हाथों में तेरे उदासी के छाले
तेरे रास्तों में क्यों बंदिश बड़ी है
दहलीज पर क्यों गुमसुम खड़ी है
तोड़ दे सब भरम छीन ले माँग मत
कोई रोकेगा कैसे जो तेरा है हक़
तू स्वयंप्रभा है तू उज्ज्वला है
तू आदि-शक्ति तू निर्भया है
तू पूर्ण है तुझको है किसकी जरूरत
तू शुद्ध है पतित पावन तुम्हारी है सीरत
फिर क्यों निराशा की तिमिर शेष है
परमब्रह्म का जीवित तू अवशेष है
पोंछ ले अब ये आँसूँ घर से बाहर निकल
आकाश है तू ये धरती अग्नि वायु जल
सब तुझमे समाहित
सब तुझसे प्रवाहित
तोड़ दे तू उसे जो बंधी हथकड़ी है
दहलीज पर क्यों तू गुमसुम खड़ी है
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*कविराज तरुण' 'सक्षम' । 9451348935*
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